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भुगतान के इंतज़ार में अटका ग्राम सचिवालय ग्राम प्रधान को जान का खतरा,

गाजीपुर। करंडा विकास खंड अंतर्गत ग्राम पंचायत करण्डा के गरीब व भूमिहीन अनुसूचित जाति के ग्राम प्रधान राजेश बनवासी न्याय की गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं। ग्राम सचिवालय के निर्माण कार्य के लिए शासन स्तर से मिली अनुमति और क्षेत्रीय अधिकारियों की सहमति के बाद भी, आज तक निर्माण कार्य का भुगतान लंबित है।
जानकारी के मुताबिक, ग्राम पंचायत करण्डा के अराजी संख्या 667क, रकबा 7.4680 हेक्टेयर पर स्थित खाली आबादी भूमि पर ग्राम सचिवालय के चार कमरों की दीवारें छत स्तर तक दिनांक 15 अक्टूबर 2021 से पहले ही बन चुकी थीं। निर्माण कार्य पूर्ण रूप से ठोस एवं गुणवत्तापूर्ण कराया गया था।
ग्राम प्रधान ने आरोप लगाया है कि जब उन्होंने अधिकारियों द्वारा मांगे गए कमीशन और एमबी (मेजरमेंट बुक) के बदले में पैसा देने से इनकार कर दिया, तो निर्माण के दो महीने बाद तक उनका भुगतान टालते रहे। इसी बीच गांव के ही एक प्रभावशाली व्यक्ति और करण्डा इंटर कॉलेज के प्रबंधक बृजेश कुमार सिंह ने निर्माणाधीन भूमि पर दावा करते हुए 15 दिसंबर 2021 को सिविल जज सीनियर डिवीजन, गाजीपुर से स्थगनादेश (स्टे ऑर्डर) भी ले लिया।
अब हालात यह हैं कि निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है, भट्ठा मालिक, मिस्त्री, मजदूर और सामग्री विक्रेता ग्राम प्रधान से भुगतान की मांग कर रहे हैं और उन्हें मुकदमे व जान से मारने की धमकियाँ तक दी जा रही हैं। ग्राम प्रधान का कहना है कि उन्होंने कई बार विकास खण्ड एवं जिला स्तर के अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा, लेकिन किसी ने अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया।

ग्राम प्रधान राजेश बनवासी का स्पष्ट कहना है कि –

> “स्थगनादेश के पहले तक का निर्माण कार्य रजिस्टर एवं दस्तावेज़ों में दर्ज है। मेरा न तो कोई व्यक्तिगत स्वार्थ था और न ही अनियमितता। फिर भी मुझे और मेरे परिवार को लगातार अपमान, धमकी और मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है।”



अब उन्होंने जिलाधिकारी गाजीपुर से मांग की है कि स्थगनादेश के पूर्व किए गए कार्य का भुगतान शीघ्र कराते हुए उन्हें और उनके परिवार को मान-सम्मान एवं जान-माल की सुरक्षा प्रदान की जाए। बता दें कि कुछ दिनों पूर्व करंडा ब्लाक परिसर में ग्राम प्रधान द्वारा अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन किया गया था नायाब तहसीलदार के हस्ताक्षेप पर धरना प्रदर्शन समाप्त हुआ था।
अब देखने वाली बात यह होगी कि जिला प्रशासन एक मुसहर ग्राम प्रधान की इस पीड़ा को कब संज्ञान में लेता है, या फिर यह मामला भी सरकारी फाइलों की धूल में दब कर रह जाएगा।

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